'' मेने देखा''


 मेने पंख कटे पक्षियो को आकाश मे उङते देखा है

 गिरते हुए पानी को राह बनोते देखा है

 चलते रहो2 मिल जाएगी मंजिल कही

 हमे मंजिल से मतलब है जीत ना हो हार सही

 बांध लो तुम कफन सर से ठान लो बस लङना

 यह ना सोचो तुम कभी भी जीना है या मरना है

 ठान लो तुम रुकना वही जहा हमारी मंजिल है

 रुकना नही चलते रहना तोङनी हर जंजीर है

 हमे लगाने है नारे और जयकारे जीत के

 भरना है हर दिल मे भाव दया और प्रीत के

 मेने छोटे से किङे को पत्थर मे घुसते देखा है

 अगर ठान लो तो हाथ तुम्हारे अपने किस्मत कि रेखा है

 भुल जाओ दुनिया को तुम्हे करम अपना करना है

 आज नही तो कल मगर ईक दिन जरुर मरना है

 पत्थर हो या दिवार कोई अब उसे तोङ कर जाना है

 कांटे कितने भी हो राहो मे बस हमे मंजिल को पाना है

 कर करम नेक बन सच्चा बन्दा तुझे दुनिया को दिखलाना है

 मर कर कैसे जीते है तुझे दुनिया को सिखलाना है

 तुफा आएगे राहो मे तुमको उससे टकराना है

 दुनिया क्या मोम पिघलाए भला तुमको तो पत्थर पिघलाना है

 क्या ताकत तेरी बाहो मे ईसका एहसास कराना है

 क्या सुनता है इस दुनिया कि तु खुद ही एक तराना है

 मेने सर कटे हुए शेरो को लङते देखा है

 सास रुक गयी वही तेरा लेखा जोखा है॥

             'खुशिया''


 सुरज की पहली किरण के साथ

 लौट आती है मेरे घर मे ''खुशिया''

 कभी खेतो कि मेड़ो पर

 तो कभी बगिचो के फुलो मे

 मिल जाती है मुझे ''खुशिया''

 कभी चाँद पर छा जाती है ''खुशिया''

 तो कभी तारो के संग खेलती है ''खुशिया''

 गम को भुला देती है ''खुशिया''

 दु:ख को दबा देती है ''खुशिया''

 लोग कहते है गम की पहचान है आँसु

 मगर मेरी तो ''खुशिया'' भी ले आती आँसु

 कभी रात के अन्धेरे मे भी चमकती है ''खुशिया''

 कभी दिन के उजाले मे भी नही दिखती ''खुशिया''

 कभी सपने संजोकर नींद ले जाती है ''खुशिया''

 कभी सपने बनाकर नीद दे जाती है ''खुशिया''

 जब मिलता है कोई बिछड़कर साथ लाता है ''खुशिया''

 हर किसी की जिन्दगी मे अहम होती है ''खुशिया''

 युं तो हर कोई चाहता है ''खुशिया''

 मगर नसीब वालो को ही मिलती है ''खुशिया''

 कभी गैर भी दे जाते है ''खुशिया''

 कभी अपने भी नही दे पाते ''खुशिया''

 मुझे ढेर सारी मिली है ''खुशिया''

 कुछ बांटी फिर भी बहुत बची है ''खुशिया''

 यु तो हर कोई चाहता है ''खुशिया''

 मगर ये कोई नही जानता कि कौन है ''खुशिया''